अटारी वाया अटैची

घर से निकलते वक्त हमेशा अटैची साथ हो जाती है। कुछ सामान को रख लेती है। रात से लेकर सुबह का सामन। अटैची होती है तो भरोसा होता रहता है कि सफर में भी एक घर है। ट्रेन की खिड़की से दिखते नज़ारे इससे पहले कि किसी और दुनिया में ले जाएं नीचे रखी अटैची पर अचानक गया ध्यान अहसास करा देता है कि किस दुनिया से आ रहे हैं और कहां जाना है। सफर की सबसे भरोसेमंद साथी अटैची। अगर टिकाऊ हो तो लगता है कि कुछ नहीं होगा। मेरे साथ मज़बूत अटैची है। उसका ताला किसी से नहीं खुलेगा। आप धीरे धीरे अटैची पर भरोसा भी करने लगते हैं।
ऐसी ही कुछ अटैचियां समझौता एक्सप्रैस में रख दी गई थीं। इन्हें रखने वाला इनसे दगा कर रहा था। वो खुद इस सफर में नहीं था। मगर अटैची को किसी और अटैची के बीच मिलाकर रख आया था। भरोसे की बात होगी कि किसी को शक नहीं हुआ होगा । नज़र पड़ी भी होगी कि यात्रियों ने सोचा होगा कि अपनी अटैची पर तो इतना भरोसा करते हैं, दूसरों की अटैची पर क्यों शक करें। यहीं कहीं होगा इसे लाने वाला भी। आखिर हम भी तो अपनी अटैची से ज़्यादा दूर नहीं रह सकते। हम क्या सभी अटैची के करीब होते हैं। लोगों ने सोचा होगा भीड़ में दबा हुआ इसका वारिस चोरी छिपे देख रहा होगा। मगर नहीं हुआ होगा।
भरोसे की इसी आदत का फायदा उठाया होगा आतंकवादियों ने। यह समझ कर जब तक कोई इन पर शक करेगा..अटैचियां उनके भरोसे को हमेशा हमेशा कि लिए खत्म कर चुकीं होंगी। समझौता एक्सप्रैस में सभी अटैचियां विश्वासघाती नहीं थीं। वो बड़े भरोसे के साथ अपने सामान को ले जा रही थीं। इनका पहुंचना ही होता है सफर का पूरा होना। घर पहुंचते ही किस तरह परिवार के लोग खोलने के लिए बेताब हो जाते हैं। तह किए गए सामानों के निकलने का इंतज़ार करते हैं। एक भरोसे को सब आपस में बांटते हैं। ये मेरा सामान है। ये मेरे लिए है। कितनी खुशियां बांट देती है ये अटैची।
सब आराम से सो रहे होंगे। आखिर जिस सफर में भरोसे की इतनी अटैचियां हो उसमें एक दो पर शक कर क्यों कोई अपनी रात खराब करता। सब सपने देखना चाहते होंगे। पहुंच कर कुछ कहने और कुछ करने के सपने। तभी एक अटैची तमाम अटैचियों से गद्दारी करते हुए फट पड़ी होगी। सब कुछ जल गया। सब कुछ जल जाने के बाद ही तो हम पहुंचे थे कैमरा लेकर। मौत की संख्या और घायलों का हाल बताने के लिए। हम बहुत भरोसा करते हैं। जहां भरोसा करते हैं वहीं नज़र होती है दंगा करने वालों की, आतंक फैलाने वालों की। आतंकवादियों ने बहुत सोच समझ कर अटैची को हथियार बनाया। भरोसे की ऐसी आग लगी कि सब जल गए। राख हो गए। जानकार कहते रहे कि ये हमला भारत और पाकिस्तान की दोस्ती पर हुआ है। रिश्तों पर आंच नहीं आने देंगे। मैं सोचता रहा कि ये हमला मुल्कों के भरोसे को तोड़ने के लिए नहीं था। बल्कि सफर के भरोसे को हमेशा के लिए खत्म कर देने के लिए था।

2 comments:

SHASHI SINGH said...

बहुत दिनों बाद आखिर आप मिल ही गये संवाद करने को. अब तक आपकी बातों पर कान लगा रहता था अब आपके कान में भी कुछ कह पाऊंगा. सालों से आपकी एक-एक रिपोर्ट जैसे आज भी आंखों के सामने हैं. और कल तो गज़ब ही गया... कल हमारे अपने रवीश कुमार का व्यवस्था पर गुस्सा ऑनएयर फुट पड़ा. उन्हें झुंझलाहट थी कि हालात बदलते क्यों नहीं... कैसे हमारे नेता चैनलों पर चेहरे चमकाते हुए सफेद झूठ बोल जाते हैं? आप जैसे चंद पत्रकारों का गुस्सा ही तो जो आज चैनलों की भेड़चाल में कुछ उम्मीद जगाये हुये है. अब आप आप यहां कस्बे में हैं तो मुलाकात होती रहेगी. मौका निकाल कर हमारे लोकमंचपर भी आइयेगा.

azdak said...

अच्‍छा है...