अगर मैं प्रधानमंत्री होता

अक्सर लेख का यह विषय स्कूल में मिल जाया करता था। २० अंकों का लेख। मास्टर जी क्लास में इधर उधर देखे बिना लिखने को कहते थे। १३-१४ साल की उम्र में इस अनजान सपने को देखते हुए हम लिखने लगते थे। बिना भूगोल और लोग को जाने हम लिखते रहते थे। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो भारत को आधुनिक बना देता। जहां कोई गरीब नहीं होता। सबके पास काम और पढ़ाने के लिए मास्टर होता। विज्ञान के क्षेत्र में भारत का नाम रौशन करता। सड़के बनवाता। बिजली पहुंचाता। वगैरह, वगैरह।

१५ साल बाद अगर मास्टर जी यह लेख लिखने के लिए तो आप कैसे लिखेंगे। शायद मैं यूं लिखता कि अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो अपने सात पुश्तों का इंतज़ाम करता । पार्टी हाईकमान के कहने पर सरकार गिरा देता। झूठे वादे करता कि हजारों नौकरियां हम दे रहें हैं आप बस लाखों वोट दे दीजिए। प्रधानमंत्री बनने के बाद गरीबी रेखा से नीचे के आंकड़ों में हेर फेर करता और गरीबों को आंकड़ों से गायब कर देता। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो अयोघ्या से लेकर गुजरात तक के दंगों में मौन हो जाता । अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए ब्रीफकेस में नोट भर कर सांसद खरीदता। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो पुरानी लिखी कविताओं को सुनाता रहता। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो प्रधानमंत्री बनने वाले संभावितों को फंसाता रहता । अरे हां विकास, बिजली और विज्ञान की भी बातें करता। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो भारत के फटे हाल लोगों का हाल छोड़ कर अपना हाल ठीक करता ।

शायद यह सब इसलिए लिखता क्योंकि अब प्रधानमंत्री के बारे में हम यही सब जानते हैं। स्कूल वाले लेख में वो बातें इसलिए लिखते क्योंकि एनसीईआरटी की किताबों में भारत के बारे में यही पढ़ाया जाता रहा था। प्रधानमंत्री को एक आदर्श संवैधानिक आचरण वाला शख्स बताया जाता रहा था। पत्रकार बनने के बाद न जाने क्यों हर वक्त सरकारों पर शक होता रहता है। मंत्रियों के कारनामे काले ही लगते हैं। इसलिए अब मैं दावे के साथ नहीं कह सकता हूं कि स्कूल के १५ साल के अनुभवों के बाद मैं वैसा मासूम लेख फिर से लिख पाऊंगा। कि अगर मैं प्रधानमंत्री होता....रवीश कुमार

10 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

सभी पोस्टींग के लिए साधुवाद्...(एक साथ्..!) विचार से लेकर कविता तक अच्छे लगे. खासकर -तुम जो छूरी चलाते हो..वाली बात तो और भी अच्छी लगी. और हां..सर्वे बकवास होता है, ऐसा मैं भी मानता हूं.
आपका
गिरीन्द्र नाथ

Irfan Ali from princeton, New Jersey said...

Dear Ravish,
Jab pahli baar aapsey mila to laga ke jaise aap bhi usi bheed ka hissa hai jismey saikdo patrkar haath me dairy aur pen liye apney apney channel ke liye news banatey hain.
Ghalat tha mai... ye baat mujhey ab samajh aa gayee hai ke aap news banatey nahi balki zamini haqiqat ko dhoondtey hai. Samaj ki har us chhoti chhoti baat ko pakadtey hai jinsey aam aadmi ka sarokar hota hai.
"Agar Mai Pradhan Mantri Hota" Padhkar youn laga jaise Pradhan Mantri ke liye zaroori qualification ko explain kar rahe hain. "Aadhunik Rasoi" aur "Jhansa" bahut achha hai.

Irfan

journalist said...

i am sorry i cannot write in hindi - though i would have loved to type. Anyways - i can only say encomiums pour in a cascade for your write ups. they are simple and very strong. its like someone trying to stop fire using gasoline. such power you have in your write ups. kudos.

journalist said...

sir this is me...dinesh akula

azdak said...

"someone trying to stop fire using gasoline" लेखनी का अच्‍छा बयान है. तो ऐसे तो आजू-बाजू प्रशंसक लुकाये रखे हैं,अब तो खुश हो जाईये, महाराज.

littichokha said...

क्या एक छात्र का मासूम लेख हक़ीकत नहीं हो सकता? क्या एक पत्रकार के अनुभव का सच होना जरूरी है? क्या हमारे नेता (?) घर से ही बेईमान निकले थे या रास्ते की आवोहवा ने उन्हें बिगाड़ दिया? घर से गर निकले थे ये बेईमान तो जला दो इनके आशियाने को... वरना मर्ज नासूर है. हवा का रूख कहीं हमारे मशाल को हमें ही जलाने को न उकसा दे.
- शशि सिंह

pretty ananya said...

dis is a nice essay i likd it............................................................................ ananya <3

simran said...

uv got magic in ur hands simple and complicated easy 3 understand and deeep i liked the essay !

Parveen said...

अपनी वही बारहवीं क्लास की कॉपी याद आ गयी। लिखा भी था और वही जानते भी थे। फिर कॉलेज पहुंचे तो भारत में एक नया फैशन आ गया था- गठ बंधन ....
जो अब तक चल रहा है। उसके बाद- अगर मैं प्रधानमंत्री होता की जगह- " अगर मैं प्रधानमंत्री चुना जाता"

अगर मैं सांसद होता! अगर मैं एमएलए होता! अगर मैं ...... मैं होता!

बिल्कुल सटीक कहा आपने!

Rajeev said...

पता नहीं क्यूँ दिल को छूती है आपकी लेखनी। कितनी स्पस्ट्टा से आप अपनी बात कह जाते हैं। जादू है आपकी लेखनी में। कल से शुरु किया हुँ पता नहीं कितना सारा ब्लॉग पढ़ गया। हर एक एक से बढ़कर एक। उम्मीद है ये नेक काम जारी रहेगा।