सर्वे का सच

दोस्तों कभी मेरा सर्वे नहीं हुआ। न मोबाइल और सेक्स के मामले में, न वोटिंग के बाद एक्जिट पोल के मामले में। अक्सर टीवी और अखबारों में छपने वाले सर्वे के प्रतिशतों में खुद को ढूंढते हुए बुढ़ाता जा रहा हूं । इधर सर्वे के सैंपलों के लगातार बढ़ने के बाद भी कोई मुझसे नहीं पूछ रहा है। शादी के बाद के संबंधों पर हुए सर्वे पर मुझसे पूछा जाता तो मैं काफी कुछ बता सकता था। अपने बारे में नहीं उनके बारे में जिनके संबंधों के बारे में सब जानते हैं। मैं बताता कि कैसे सेक्स और संबंध एक अफवाह की तरह समाज में फैलते हैं । हर शादीशुदा संकट में है। नौकरी का तनाव है। वो जंक फूड खाता है। न बीबी पति के लिए पकाती है न पति बीबी के लिए। खाना आर्डर होता है। पत्नी काम के अधिक घंटे के बाद काम करने वाले सहयोगी के साथ भावुक रिश्ता जोड़ लेती है। और पति भी घर लौटते हुए अपनी गाड़ी में किसी को कहीं छोड़ आता है। शह और मात का खेल जारी है। कहीं कोई टिकाऊ नहीं है। जो है बिकाऊ है। सर्वे है।

बदलते समाजों के सवालों का सर्वे हो रहा है और हमसे पूछा तक नहीं जा रहा है। बिल्कुल ग़लत बात है। वैलेंटाइन डे के एक दिन पहले हुए सर्वे में महानगर के तमाम युवाओं ने कहा था कि हम मां बाप की मर्जी से शादी करेंगे । यह सर्वे वैलेंटाइन डे के मौके पर बदलते वक्त की धारणाओं को चिढ़ा रहा था कि देखों अब भी युवा अपने पसंद नहीं मां बाप की पसंद को तरजीह देता है। ठीक ही होगा। पर सर्वे में युवाओं ने यह नहीं बताया कि उन्होंने अपने एकांत में देखे गए सपनों में कितनी लड़कियों को आगोश में लिया। लड़कियों ने यह नहीं बताया कि अक्सर लिफ्ट में अकेले सोचते सोचते वो क्यों मुस्कुरा उठतीं थीं। किससे पूछ कर और किसकी याद में। सर्वे झूठ बोलता है या सच बोलने का मौका ही नहीं देता।

कई बार सर्वे गलत हो जा रहे हैं। सवाल गलत थे या पूछने वाले गलत थे साफ नहीं हो पाता । हमने दरभंगा में देखा था..चुनावों की मारपीट के बीच मेडिकल कालेज के लड़के मां बाप की मर्जी को तोड़ने के लिए बेताब थे। अंग्रेजी गानों पर नाच रहे थे। जहां नाच रहे थे वहां लड़कियां नहीं थीं। वो दूर समूह में लाउडस्पीकर से आने वाली आवाज़ों से सिहर रहीं थीं। लाउडस्पीकर कहता था प्रतिमा तुम मेरी हो। तुम जहां भी हो आ जाओ। मैं इस आवाज़ को सुनता हुआ लड़कियों के खेमे में था। उनके चेहरे को देख रहा था। खुशी तैर रही थी। हंसते हुए सबके कंधे आपस में टकराने लगे थे । सर्वे इन भावनाओं को नहीं पकड़ता जो बिना किसी की मर्जी के अपने आप उमड़ रही थीं। दिल्ली से दूर चंद लड़के नथिंग गॉना चेंज माय लव फार यू..के गाने पर मदहोश हुए जा रहे थे। सर्वे कहां पकड़ता है ऐसे उतार चढ़ावों को। वो तो सवाल करता है। उम्र पूछता है। फैसला पूछता है। फैसले के पहले के चोरी छुपे सजायी गई कल्पनाओं को नहीं पकड़ता । हमारा समाज सिर्फ नतीजे में नहीं बदलता । वह अपने दोहरेपन में भी बदलता है। आप रात को सपने में किसी के साथ सोते हैं। दिन में मां बाप की मर्जी पर चलने का एलान करते हैं। सर्वे बकवास है।

3 comments:

azdak said...

बुड्ढे जैसे शाम को दालान में फेंस से घिरी छोटी बगिया का मुआयना करते हैं, कुछ उसी अंदाज़ में टहलता कस्‍बे तक चला आया था. इतना कहूंगा कि सरसरी तौर पर जो नज़ारा दिखा उससे थोडा ताजुब्‍ब में हूं. तो ये मजमां तो बडी तेजी से बंध रहा है. अच्‍छा है. कविताओं की मेरी कोई समझ नहीं, तो उसपर मुंह नहीं खोलूंगा मगर हिदी मानसिकता और सर्वे का सच वाले टुकडे सही हैं. अभी देखा भर है, ज़रा गौर से पढ लूं तब उस पर कुछ राय भी बनाऊंगा. लगे रहिये, सिपाही. वैसे इधर-उधर कुछ प्रूफ की गलतियां रह गई हैं, उत्‍साह में हम सब से रह जाती हैं, दुरुस्‍त कर लीजियेगा. आगे की शुभकामनायें.

Unknown said...

Sahi Kahi, Bhai Sahab aapne.
Abhi Aaj Tak bhi Sabse Sexy Kaun Survey dekha. Na jane kitni heroin ghash kha kar gir gayee hongi. Baithe baithe kisi ko aage kisi ko peechhe kar diya. Aapki lekhni Padhte samay ek bhai saheb office me saath the. Yogendra ji ke saath sangharsh ke dinon me unhone kaam kiya tha. Survey ki baaten nikal padi.

Sab daal roti ka maamla hai.
Om Prakash, India TV

Sumeet Pareek said...

मैं लिखना नहीं जानता .. या यूँ कहें के सोचता / बोलता / देखता तो बड़ा 'natural' हूँ .. लेकिन लिखने लगूं तो 'forceful' हो जाता हूँ .. अपने 'natural' ऑब्जरवेशन को ठीक वैसा ही व्यक्त करने के लिए शब्दोँ को 'distill' करना पड़ता है .. उस 'analogy' की मदद लेता हूँ जो मन में मौजूद समझ की 'clear', 'convincing' और 'natural' reflection बन सके .. इस 'process' में एक आनंद + संतोष वाली 'feeling' आती है .. पर अगर एक 'certain time' के अंदर सब कर लूं तभी .. अगर ज्यादा टाइम निकल जाए तो 'frustrate' हो जाता हूँ .. आगे लिखने में भी, और ना लिखने में भी .. 'खटक' रह जाती है ..

जो भी मूल कारण हो मेरे ऐसे होने का, या मेरे संग ऐसा होने का .. और जो भी चाहे समाधान हो .. आप का लिखा, मेरे अधूरे के 'finished' सा लगता है ..

इस लेख संग एक सा तो हर जगह ही लगा .. पर कहीं जहाँ मुस्कराहट से दाद दी हो, कहीं 'deep breath' से, वो शायद ये हो -- (..) पत्नी काम के अधिक घंटे के बाद काम करने वाले सहयोगी के साथ भावुक रिश्ता जोड़ लेती है। और पति भी घर लौटते हुए अपनी गाड़ी में किसी को कहीं छोड़ आता है (..)

PS: मेरा हिंदी प्रेम - गोलकी ने .. उस के सुनाये / 'share' किये गानो ने .. और आप की कथा, लघु कथा और रविशपंती ने खूब जगाया है

चलते रहिये .. हम भी अपने से चल रहें हैं ..