होली पर राष्ट्र के नाम झेल संदेश

दोस्तों । (देशवासियों नहीं) मैं किसी कीमत पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बन सकूंगा । बनता तो कुछ चीज़ों को बदलने की कोशिश करता । ये वो काम हैं जिसके लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की दरकार नहीं होती । मैं होली, ईद या गुरुपर्व पर दिये जाने वाले संदेशों को बदलने की कोशिश करता । क्यों ?

क्योंकि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के संदेश बहुत झेल हो गए हैं । थर्ड क्लास । लगता है १९४८ की होली और ईद में लिखकर कोई दुनिया से प्यारा हो गया मगर उसके लिखे संदेश इन दोनों के दफ्तरों की मेज़ पर छोड़ गया होगा । वही संदेश अभी तक साइक्लोस्टाइल होकर जारी होते आ रहे हैं । क्या बात है कि सरकार बदलती है, नेता बदलता है मगर संदेश नहीं बदलता । हद हो जाती है ।

आज भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संदेश आए । होली शांति और सद्भावना का पर्व है । कई समाजों को करीब लाने का मौका देता है । होली हमें एक दूसरे के प्रति मोहब्बत के लिए प्रेरित करती है । राष्ट्रपति के संदेश में लिखा गया था कि मेरी शुभकामनाएं है कि होली इस साल देश में आपसी रिश्ते को बेहतर करेगी । क्यों सर ? दंगा हुआ था क्या इस साल ? क्यों नहीं लिखते कि भाइयों जम कर होली खेलो । मैं भी खेलने वाला हूं । और कोई काम मत करो । सरकार ने छुट्टी दी है । मज़े करो । डांस करो । भांग सेवन करो । या लेट्स प्ले होली और गेट इन टू ऑल कलर्स ऑफ लाइफ । मनमोहन सिंह के पास नया करने का मौका था । कह सकते थे कि सेंसेक्स गिर जाए । दाम बढ़ जाए। फिर भी होली मनाना । होली का देश की माली हालत से कोई लेना देना नहीं । बेस्ट ऑफ लक । नहीं । नई बात नहीं कहेंगे । उल्टी भी नहीं आती बार बार हर बार झेल संदेशों को जारी करने में । प्रधानमंत्री चीयर्स बोल देंगे तो क्या देश में दारू की बाढ़ आ जाएगी ।

मेरा कहना है कि त्योहारों पर जारी होने वाले सरकारी संदेशों का कंटेंट बदला जाना चाहिए । उनमें रस हो । ह्यूमर हो । हम सब इसकी मांग करें । शांति और सद्भावना के लिए नहीं होली के लिए होली खेलें । शांति और सद्भावना । प्रह्लाद हिरण्यकशिपु की कहानी का क्या हुआ ? उसी का हवाला देते कम से कम । ओरीजनल कहानी ही बता देते । प्लीज़ इनके बकवास संदेशों को फाड़ कर फेंक दें ।

एन्जॉय योर होली ।

कस्बागत कुमार

4 comments:

Unknown said...

शायद आपका संदेश महोदयों तक पहुंच जाए। और अगली बार कुछ तब्दीली देखने को मिले। वैसे भी इनकी सुनता कौन है और इन्हें भी इसकी फ़िक्र कहां है? ये तो कुर्सी का रस्म निभा रहें हैं। और इनकी ज़िन्दगी में हम जैसा रंग कहां है? रवीश भाई, इन्हें छोड़े हम खुद अपनी ज़िन्दगी रंगों से सजाएं। आओ होली मनाएं।

होली है...

Jagdish Bhatia said...

लालू से दिलवाईये होली के संदेश।
जो आप कहना चाहते हैं उसे लालू अच्छी तरह समझते हैं, तभी तो लोगों को वे अपने में से एक दिखते हैं ( हैं या नहीं यह अलग बात है;) )

आपको होली की शुभकामनायें। चीयर्स !!

Jitendra Chaudhary said...

अरे इ तो हमरे मुँह की बात छीन लिए हो। ये तो मसाला हो गया ब्लॉग पोस्ट लिखने के लिए

मान लो आपको राष्ट्रपति (वैसे रबर स्टैम्प बनना नही चाहोगे, पक्का यकीन है मुझे) बना दिए जाए, तो क्या संदेश देंगे। अब इस पर लिखना जरुर। और हाँ, 'महादेव बम' लगाने के साथ लिखोगे तो हम भी झूम लेंगे, इधर चार समुन्दर पार में।

पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा।

ePandit said...

खूब आइडिया है, इस पर विचार होना चाहिए।

रवीश जी, वाक्य के अंत और पूर्णविराम के बीच स्पेस नहीं आता। पूर्णविराम और नए वाक्य के बीच में स्पेस आता है।