यूपी का पप्पू पास हो गया

उत्तर प्रदेश के कस्बों गांवों के नौजवानों का क्या कहना । वो नेताओं से नकल की अनुमति चाहता है। फिर सर्टिफिकेट लेकर सिपाही बनना चाहता है । देश का सिपाही नहीं । नाकों पर वसूली करने वाला सिपाही । जो नौजवान चोरी कर पास होता हो उस बेचारे से क्या उम्मीद । मैं उत्तर प्रदेश की पूरी बेकार जवानी को नहीं गरिया रहा हूं । कुछ लोग तो बिना नकल के पास हो ही रहे हैं । कुछ लोग मेरिट से डाक्टर इंजीनियर भी बन रहे हैं । मगर ज़्यादातर कैसे बन रहे हैं ? बेशर्मी की हद पार कर दी है । मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं थी । किसी के लिए भी नहीं है । बस फिर से चिंता हो गई । किसी महान नेता नुमा भाव पैदा हो गया । सवाल पैदा हो गया कि इस देश का क्या होगा ? बहुत दिनों बाद चिंता हुई देश के बारे में । अक्सर नहीं होती है । देशभक्त होने के बाद भी ।

तो मैं कह क्या रहा था..यही न कि यूपी में पप्पू नकल से पास हो रहे हैं । आजकल पप्पू मुन्ना भाई के नाम से भी जाने जाते हैं । अब समझ में आया कि मुन्ना भाई क्यों हिट हुई । देश की पढ़ी लिखी आबादी का पचास फीसदी से अधिक हिस्सा नकल से पास होता है । तो फिल्म हिट होनी थी । क्यों ? क्योंकि मुन्ना भाई ने सार्वजनिक तौर पर पहली बार मनोरंजन के ज़रिये नकलचियों को इज्ज़त बख्शी। उन्हें सर उठाकर घूमने का मौका दिया । कह सकते हैं जब दर्शक मुन्ना भाई पर पैसा लुटा सकता है तो हम क्या बुरे । हम क्यों सर छुपा कर जीयें । सर उठा कर जीयेंगे । तभी शूट करते वक्त कुछ नौजवानों ने कहा कैमरा बंद कीजिए और निकलिये । मैं भी अड़ा रहा। शूट किया । एक ने कहा भाई साहब अब तो हम लोगों पर फिल्में बनती हैं । गांधीगीरी को हमीं से नया आयाम मिला है । आप कहते हैं हम नकल कर रहे हैं । ज़्यादा अकल हो गई है क्या ? मुन्ना भाई देख लीजिएगा । एक बार फिर मुन्ना भाई देखने का मन कर रहा है। कि वाकई में इस फिल्म में नकल करने वाले शार्ट कट वाले अधिकांश भारतीय मध्यमवर्ग को मर्यादा का स्थान दिया है । ईमानदारों पर गांधी को गाड़ देने का आरोप है । गांधी को बोझिल बना देना का आरोप है । तो क्या इसके लिए गांधी का इस्तमाल किया गया ? पर हमने तो बड़े बड़े लेखकों और गांधी के परपोतों का भी बयान पढ़ा था कि मुन्ना भाई की गांधीगीरी से गांधी आम जन के हो गए हैं । क्या उस आमजन के हो गए जो नकल करते हैं, चोर हैं ? क्या इन्हीं का आदर्श बन जाना गांधी की प्रासंगिकता थी ? जिसका इंतज़ार किया जा रहा था । इन बयानों को कैसे समझूं । मुन्ना भाई देखूं या यूपी के पप्पुओं को नकल से पास होते देख अपनी आंखे मूंद लूं । क्या करूं ?

5 comments:

अनूप शुक्ल said...

तेइस साल पहले की एक बिहारी अध्यापक के कही बात याद आ रही है। उन दिनों बिहार नकल के मामले में औरों के मुकाबले कुछ ज्यादा हे बदनाम था। अध्यापक ने कहा था- हमें इस बात की चिंता नहीं है कि यहां नकल होता है। हमें चिंता इस बात की हो रही है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो अगली पीढी़ को नकल कौन करायेगा! :)
आप अपना काम करिये। सूट किये हों तो हमको भी दिखायें। देखें जरा आज नकल के कौन से तरीक चलन में हैं!

अनुराग मुस्कान said...

मेरा ख्याल है... नकल को लेकर आपको विस्तारवादी सोच से काम लेना चाहिए... पप्पुओं की कर्मस्थली को सीमित करना बेमानी है... क्योंकि पप्पू सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे देश में पाए जाते हैं... आपके आसपास भी हो सकते हैं... आपके कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हुए... हां,मुन्नाभाई दोबार देखने कोई हर्ज नहीं है, बस मनोरंजन के लिए देखिएगा... नकल को समझने के लिए पैसे ख़र्च करने की क्या जरूरत... आपके और हमारे धंधे में क्या कम नकल होती है... क्या ख़्याल है आपका...?

अफ़लातून said...

पता नहीं किस जिले में पप्पुओं को खींच रहे थे । पता लगने वाली बात यह है कि यहाँ नकल कर इम्तेहान देने ,देश भर के पप्पू जुटते हैं ।
साल भर पढ़ाने के इन्तेजाम से भी नकल का कोई सरोकार है ?

Unknown said...

सही है पप्पू नौजवान मुन्ना भाई भी हैं और कन्धे से कन्धा मिला कर भी नकल कर अच्छे नंबर ले लेता है…
देश के लिये चिन्ता करनी ही पडेगी…नही तो नकल करने के लिये किताबें कहाँ बनेगी…
नकल्चियो की नकल कब तक कर सकते हैं ??

Anil Dubey said...

जब आज पप्पू नकल कर पास होता है तो हर्ज़ क्या है? यूपी में पप्पू पास हो या ना हो एक बात तो तय है ...उसे पैसे कमाने हैं ...चौराहे पर अपनी नेतागिरी चमकानी है...इसलिये नकल कर पास हो यही अच्छा है...कौन मेहनत करे...बाकी काम कैसे होगा.ना जाने कहां कहां से आ जाते हैं...दिल्ली में रह्ते हैं तो अपने को तोप समझते हैं...पप्पूओं तुम लगे रहो ...इनका पेशा ही है बक बक करना...टेंशन नहीं लेने का...