त्वरितर के अनुचर- मीडिया बनते शोहरतमंद

जब बरखा दत्त को साढ़े चार लाख से अधिक और राजदीप सरदेसाई को पौने चार लाख से ज्यादा लोग ट्वीटर पर फॉलो कर रहे हों तो क्या आप इस सवाल से टकराना चाहेंगे कि व्यक्तिगत फॉलोअरों की संख्या ख़बरों की दुनिया की मान्यताओं को कैसे बदल रही है? क्या प्रसार या दर्शक संख्या के बाद अब फॉलोअर संख्या का भी कोई पेशेवर और व्यापारिक औचित्य हो सकता है? क्या ट्वीटर ख़बरों और संवाद को अख़बार,रेडिया,टीवी,वेबसाइट,एजेंसी जैसी संस्थाओं से निकाल कर व्यक्तिगत मीडिया में बदलता जा रहा है? क्यों पत्रकारिता के बड़े नाम ट्वीटर पर हर पल ख़बरों और क्रायक्रमों को अपडेट करते हैं बल्कि उन कार्यक्रमों के वीडियो लिंक भी देते हैं?

हिन्दुस्तान में राजदीप और बरखा मिलकर करीब साढ़े आठ लाख लोगों तक पहुंच रखते हैं। सीएनएन के एंकर एंडरसन कूपर को दुनिया भर में उन्नीस लाख लोग फॉलो करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय चैनलों की तुलना में हमारे भारतीय पत्रकार कम हैं मगर इनकी संख्या इनके चैनलों के फॉलोअरों से ज़्यादा है। सीएनएन को इकसठ लाख लोग ट्वीटर पर फॉलो करते हैं तो बीबीसी को साढ़े चौबीस लाख और न्यूयार्क टाइम्स को करीब तैंतालीस लाख। जो खबर बरखा, राजदीप, विक्रम,सागरिका, भूपेंद्र चौबे टीवी पर ब्रेक करते हैं,कई बार टीवी से पहले ट्वीटर पर ब्रेक कर देते हैं। यह नई प्रवृत्ति चैनलों के प्रति निष्ठा को भी नए सिरे से बदल रही है। पहले हम अपने चैनल पर ख़बर चलने से पहले किसी को भनक नहीं लगने देते थे अब चैनल से पहले ट्वीट कर देते हैं। शायद इस उम्मीद में कि ट्वीट देखने के बाद कोई टीवी या चैनल ऑन करेगा। हमारे पास कोई भी शोधपरक प्रमाण नहीं हैं कि ट्वीटर की फॉलोओर संख्या मशहूर एंकरों के कार्यक्रमों की टीआरपी या लोकप्रियता के बीच कोई सीधा रिश्ता है या नहीं। फिर हम सब ट्वीटर के ज़रिये दर्शक जुटाओं अभियान में शामिल हो चुके हैं। यह काम पहले संस्था का था अब व्यक्तिगत रूप से पत्रकार भी कर रहा है। मैं इसके गुण दोष पर टिप्पणी नहीं कर रहा मगर इस प्रवृत्ति को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकते। टीवी के दर्शकों की अनुमानित संख्या तो टैम रिकार्ड करता है और उसका मार्केटिंग मतलब भी होता है। ट्वीटर पर फॉलोअर की संख्या का भी कभी मार्केटिंग मतलब ज़रूर होगा। ख़बर ट्वीट होते ही प्रतिक्रियाओं की भरमार लग जाती है। मैं खुद अपने कार्यक्रम के ज़रिये दर्शकों से संवाद करने से पहले ट्वीटर पर भिड़ चुका होता हूं। इस तरह जो हंगामा टीवी देखकर मचना चाहिए था वो हलचल टीवी के पत्रकार टीवी से दूर ट्वीटर की दुनिया में पैदा कर रहे होते हैं। अब पहले से पता होता है कि अमुक दर्शक क्या सोच रहा है।



पहले न्यूज़ एजेंसी के मार्फत ख़बरें फ्लैश की तरह आती थीं अब हर कोई फ्लैश कर रहा है। यहां तक कि पीटीआई और यूनीआई भी ट्वीट कर रहे हैं। अखबार, टीवी और पत्रकार सब फ्लैश करने के काम में लगे हैं। दुनिया भर में मशहूर रॉयटर न्यूज़ एजेंसी को चौदह लाख लोग ट्वीटर पर फॉलो करते हैं। न्यूज़ एजेंसियां भी संस्थानों को किराये पर ख़बर देने के अलावा अपने फॉलोअर में फ्री की बांट रही हैं। मोबाइल फोन पर ट्वीटर ख़बरों का बड़ा माध्यम बनने लगा है। ट्वीटर पुराने माध्यमों से होड़ करता हुए एक नए माध्यम के रूप में स्थापित हो चुका है। जो काम वेबसाइट, यू ट्यूब या फेसबुक नहीं कर सके, न्यूज़ के मामले में ट्वीटर ने कर दिखाया है। कई लोग तो ऐसे भी हैं जो वेबसाइट से ख़बरों को उठाकर ट्वीटर पर लिंक भेजते रहते हैं। एक नया पाठक और दर्शक वर्ग है जो किसी पत्रकार या चैनल के विशेष काम को उस तक पहुंचे बिना देख रहा है या सराह रहा है। बल्कि अब चैनल का दर्शक से सीधा रिश्ता कमज़ोर पड़ रहा है और उसके पत्रकारों का सीधा रिश्ता बन रहा है। वीडियो लिंक ट्वीट करने से हो सकता है कि फॉलो करने वाले लाखों लोगों ने उसे देखा हो मगर इस काम के लिए ये लोग उस चैनल पर नहीं गए हों। कुल मिलाकर खबरों के प्रति हमारी सोच को बदल रही है। जो हो रहा है उसे हम जल्दी देखना शुरू कर दें।


यह सब नए सवाल हैं जिनपर सोचा जाना चाहिए। ख़बरों की दुनिया बदल रही है लेकिन ध्यान रहे कि ख़बरों की मौत नहीं हो रही है। ट्वीटर ने ख़बरों की परिभाषा नहीं बदली है। ख़बरों का स्वरूप ज़रूर संक्षिप्त हो गया है। लोग तीन पंक्तियों में प्रतिक्रिया दे रहे हैं और इस तरह से टीवी पर चलने वाली लंबी बहसों और अख़बार में छपने वाले लंबे लंबे संपादकीय से आज़ाद विचारों की नई कड़ियां आपस में टकराने लगती हैं। निश्चित रूप से इसका हमारी विचार शैली पर असर पड़ रहा है। आखिर नेताओं और फिल्म अभिनेताओं ने ट्वीटर पर प्रेस कांफ्रेंस करना क्यों शुरू कर दिया है? सुष्मा स्वराज से लेकर शशि थरूर और अभिताभ बच्चन तक अपनी बात सीधे रख रहे हैं। अमिताभ बच्चन को उन्नीस लाख लोग फॉलो करते हैं। उन्हें प्रेस कांफ्रेंस की अब कितनी ज़रूरत रह गई होगी। इसलिए वे अपने ट्वीट के ज़रिये मीडिया की खिंचाई करने से नहीं चूकते। दिग्विजय सिंह को भले ही ग्यारह हजार लोग फॉलो नहीं करते मगर उनके ट्वीट की चर्चा ट्वीटर से लेकर टीवी और अखबार तक में होने लगती है। दलाई लामा को तीस लाख लोग फॉलो करते हैं। क्या ये लोग खुद में मीडिया नहीं बन रहे हैं? मीडिया ने आम लोगों को छोड़ खास किस्म के वर्गीय चरित्र वाले लोगों से सांठ गांठ की और अब यही कुलीन ट्वीटर के ज़रिये अपने आप में मीडिया बन गया है।कहीं ट्वीटर मदर मीडिया या मातृ-माध्यम तो नहीं बन रहा जिस पर तमाम तरह के माध्यम आकर अपना नया वजूद खोज रहे हैं। ट्वीटर जिसे हिन्दी में मैं त्वरितर कहता हूं, ख़बरों की रफ्तार और प्रतियोगिता को बदल रहा है।

क्या इससे टीवी के कंटेंट में बदलाव आ रहा है? लोग टीवी पर ख़बरों के लिए आ रहे हैं या किसी और चीज़ के लिए। टीवी की नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। इसीलिए आप देखेंगे कि टीवी पर ख़बरों की जगह विचार-बहस के कार्यक्रमों की भीड़ बढ़ गई है। ये विचार बहस के कार्यक्रम कल को अखबारों के संपादकीय पन्नों के कंटेंट को कैसे बदलेंगे? वहां भी तो वही जाने पहचाने लोग लिख रहे हैं। जैसे टीवी में पांच दस लोग ही बोल रहे हैं। अखबारों के कोने में छपने वाली संक्षिप्त ख़बरें टीवी पर स्पीड न्यूज़ बनकर दौड़ रही हैं। स्पीड न्यूजड एक तरह से टीवी का ट्वीट बन गया है। ये और बात है कि अख़बारों में अभी भी रिपोर्टिंग हो रही है। ख़बरें गंभीरता और गहराई से छप रही हैं। लेकिन ट्वीटर ने रिपोर्टिंग को भी बदला है। ज़्यादातर रिपोर्टर अब अपने फॉलोअर के बीच ख़बरों को ब्रेक कर संतुष्टि पा रहे हैं। रिपोर्टरों के बीच पेशेवर प्रतियोगिता अब उनके चैनलों पर नहीं होती बल्कि ट्वीट पर होती है। मैं कोई निष्कर्ष नहीं दे रहा लेकिन लगता है कि मीडिया संस्थानों और व्यक्तिगत मीडिया के बीच एक जंग चल रही है।

इस पूरे बदलाव में हिन्दी धीमी रफ्तार से बढ़ रही है। कई फोन ऐसे हैं जो हिन्दी के फोन्ट को पठनीय नहीं बनने देते। लिहाज़ा रोमन में लिखना पड़ता है। हिन्दी में चैनलों और उनके एंकरों के फॉलोअर की संख्या चंद हज़ार ही हैं। टैम के आंकड़ों के मुताबिक हिन्दी के लोग गुमान में रहते थे कि अंग्रेजी से कई गुना हिन्दी के दर्शकों की संख्या है। मगर ट्वीटर ने इस धारणा को ध्वस्त कर दिया है। हिन्दी में शायद ही कोई एंकर है या चैनल है जिसके फॉलोअर की संख्या पचास हज़ार भी हो। इस बदलाव पर खुल कर सोचा जाना चाहिए। मेरी तरह क्या आप भी ट्वीटर पर ख़बरों को फॉलो करते हैं? अनुचरण बनने की होड़ मची है ट्वीटर पर तो बताइये आप लीडर हैं कि फोलोअर हैं?
(यह लेख दैनिक भास्कर में शनिवार को प्रकाशित हो चुका है)

18 comments:

Unknown said...

मीडिया बनाम मीडिया संस्थान का आगाज मुझे लगता है..उसी वक्त से हो गया था..जब ये दोनों अस्तीत्व में आए..हां, ये अलग बात है कि मीडिया के अलग- अलग माध्यमों को फॉलो करने वाले डायरेक्ट लिंक में नहीं थे। ट्वीटर ने बस एक बीच की कड़ी बना और जाहिर किया कि व्यक्तिगत स्तर पर किसे कौन कितना फॉलो कर रहा है। बाकी इस पूरे लेख पर गंभीर बहस होनी चाहिए।।

Unknown said...

मीडिया बनाम मीडिया संस्थान का आगाज मुझे लगता है..उसी वक्त से हो गया था..जब ये दोनों अस्तीत्व में आए..हां, ये अलग बात है कि मीडिया के अलग- अलग माध्यमों को फॉलो करने वाले डायरेक्ट लिंक में नहीं थे। ट्वीटर ने बस एक बीच की कड़ी बना और जाहिर किया कि व्यक्तिगत स्तर पर किसे कौन कितना फॉलो कर रहा है। बाकी इस पूरे लेख पर गंभीर बहस होनी चाहिए।।

प्रवीण पाण्डेय said...

हम तो ट्वीटर को कब का त्याग चुके हैं..

Mahendra Singh said...

Ravish ji, Meri pass twitter par khabron ko padhne ka time nahi hai. Agar hota to bhi main twariter ka upyog nahi karta shayad iski mujhe zaroorat nahi mahsoos hoti.Sham ko ghar pahoonchkar ek bar TV par main news dekh leta hoon phir 9 baje he TV khulti hai.Rahi baat follower ki to hindi walon ka twitter se jyada sambandh nahi hoga. Jinka hoga bhi to woh English main twitt karte honge akhir English Intelectuals ke jaban jo hai. Isse logon ka seene ke width badh jati hogi.Ek karan aur bhi hoga English walon ke pass details main news dekhne ka samay nahi hoga.Ravishji man chota karne ki zaroorat nahi Jannatnashi Bharat Bhooshan ke shabdo main" Tu man anmana kar apna isme kuksh dosh nahi tera, Dharti ke kagaz par meri tasveer adhoori rahnee thee".

Mahendra Singh said...

Bharat Bhoosan Saheb ke lines ek bar phir "Tu man anmana na kar apna isme kuksh dosh nahi tera, Dharti ke kagaz par meri tasveer adhoori rahnee thee".

रोहित बिष्ट said...

युग की जरुरत अनुसार सम्प्रेषण के माध्यम बदलते रहे हैं।डिजिटल क्रांति के इस दौर में हर शै को माइक्रो बनाने की होड़ है।ट्वीटर की दीवानगी का यही कारण है।सोचता हूँ आज हिंदी के प्रसिद कवि 'बिहारी' होते तो उनके भी दोहे breaking news की तरह ट्विट किये जाते।पर पता नहीं कितने फोलोअर मिलते उन्हें।छोटा(माइक्रो)होने,और बनाने की इस रेलमपेल में हम न तो लीडर हैं न ही फोलोअर,हम तो महज अदने से दर्शक हैं जी।

rahul said...

रवीश भाई, ट्विटर हमें च्वाइस देता है. ख़बरों, सूचनाओं, आर्टिकल आदि के महासागर में हम ट्विटर के जरिये पढने लायक मोती चुन सकते हैं. ऐसे में जय ट्विटर कहें तो गलत नहीं होगा.

RAJESH KUMAR said...

sir jee...twitter apko apke channel/akhbar ke malik ke influence ke bina apani baat kahane ka facebookia jamane gooogliya tarika hai...

SUMIT PARASHAR said...

Ye zaruri nahi h ki jo twitter pr h bs wo hi news dekhte h,
hindi news dekhne wale log english nahi jaante or internet ko prefernce nahi dete,
isliye wo twitter pr nahi h

RAJESH KUMAR said...

...waise mai apke primetime/blog/twitter tino ko follow karta hu..lekin pahale prime time fir blog..aur antim me ye twitter...
...apka comedy type anchoring primetime ko infotainment me badal deta hai...

Unknown said...

Ravish ji,
Agar aap dhyan denge to payenge ki main aapko follow karta hai twitter ar aur yada kada jab bhi samay milta hai aapko likhata bhi hu.
Main un logo me bhi hu jo Rajdeep aur Barkha ko follow karte hain.
main un logo me se bhi hu jo kahin prakashit koi news ko tweet karna pasand karte hain jab unko lagta hai ki bhai ise post karna chahiye.
Kisi ko follow karne se koi insaan ek bahut bada prabhawshali nahi ho jata. Followre ke naam par agar hum kahenge ki bhai fala insaan ek parallel media chalata hai to ye mere hisaab se galat hoga.
Follower ki sankhya badhana ho sakta hai ki marketting ho kisi ke liye, par main is baat se puri tarh isliye sahmat nahi, kyonki, hum kise follow karen ye hamari marji hai.
Agar ye marji na hoti to followers ki sankhya Poonam Pandey ki bhi kam nahi hai.
Koi aadmi aaj is sikhar par apne kaam se pahunchata hai aur log isi wajah se use follow karte hain ki bhai ye kuchh achha batayega ya likhega.
Jahan tak Diggi ki baat hai ki aapne bola ki use 11000 bhi follow nahi karte, par hamara media hamesha har roj uski baat ko natonal news banata hai. Humko to tweeter par tweet karne se jyada media ke us hisse par dukh hota hai jo us aadmi ko bhi itna mahatva dete hain kiska koi niji mahatva bhi nahi.
Ram jane ye media ka masala moh hai ya Kendra sarkar ke prati vafadaari.

Vaise humko aaj ki date me aapse jyada achha reporter koi nahi lagta, aap kripaya aise hi kaam karte rahen.

Regards,

Abhay said...

त्वरित आज तेज है, बग है जो तेजी से बाकी माधयमो को चट करता जा रहा है, ब्लॉग की हालत ही देखिये, शब्दों के विशाल मायाजाल को मायनों के साथ समझने की समझ और शाब्दिक सहनशक्ति आज के पाठकों में नदारद हो रही है. मैं फ़ॉलोवेर हूँ और खूब का बेलिएवर भी...जो समझता हूँ उसका चिंतन करता हूँ...हाँ ये बात अलग है की मेरी सोच आपकी तरह परिपक्व नहीं है. माफ़ी..

shashi sagar verma said...

जिस तरह पत्र लीखना हम लगभ्ग भुल गय है अब लगता है पत्रकारिता का लेखन भी अपनी ज़िन्दगी ज़ी चुका है …..परिर्वर्तन अपरिवर्तननीय है, लेकिन पुराने नयी की सुने और नये पुरानी की सुने तो कुछ बात बने

साधुवाद्

Ajeet Kumar said...

Ham Follower hi theek hain.

JC said...

ट्वीट पक्षी करते हैं... और पक्षी की चहचहाट, घंटी की टुनटुन, और ढोल पीटने की आवाज़ के मिश्रण को सूर्य-पुत्र शनि ग्रह से आते अमेरिका द्वारा, सत्तर के दशक आदि अंतरिक्ष में भेजे गए सैटेलाईट द्वारा, रिकॉर्ड कर लिया गया है, जबकि सूर्य से केवल एक तार-वाद्य, हार्प (हिन्दुओं के लिए ज्ञान की देवी की सरस्वती-वीणा) की ध्वनि समान जाना गया है...
और शनि ग्रह के सार को समस्त मानव शरीर में व्याप्त नर्वस सिस्टम में उपयोग में लाया जाना गया, सिद्धों द्वारा... पुराना हो या नया, सभी कुछ न कुछ आवश्यक काम कर रहे हैं - बुद्धिजीवी को कहना आवश्यक है क्या??? हमारे पूर्वज मानव शरीर को नवग्रहों के सार से बना अनादी काल से बताते चले आये हैं, और 'हम' कस्तूरी मृग समान इधर उधर भटकाए जा रहे हैं - शनि द्वारा! जय शनिदेव (लोहे और तेल वाले :)

Saptarshi said...

बड़ा मुश्किल है....

parivesh said...

मैँ आपके ब्लॉग हमेशा से ही पढता रहा हूँ, लेकिन कमेंट पहली बार कर रहा हूँ। जैसा कि आपने कहा है कि हिन्दी के पत्रकार खुमारी मे रहते है कि उनके दर्शक सँख्या अंग्रेजी के पत्रकारों से ज्यादा है जबकि ट्वीटर के फॉलोअर की सँख्या कुछ और कहती है। यहाँ मैं यह कहना चाहता हूँ कि हिन्दी चैनलो के दर्शक सिर्फ ट्वीट के भरोसे ही अपनी रुचि नहीं दर्शाते बल्कि आपके कार्य्रक्रमों को देखकर और उन पर भरोसा जता कर करते इसके उल्टे अंग्रेजी के दर्शक सिर्फ ट्वीट के भरोसे ही रहना जांते है।

परिवेश मालवीय, ललितपुर उत्तर प्रदेश

cont2chandu said...

Kaha hai sir apka twitter handle not in use kyu aa rha hai? Pharmacrat!