हिन्दी पत्रकारिता का बानर काव्य भोलुम थ्री- मौलिक कवि रवीश एंकर टीभी वाले

बनरी लगती बोर है ,
बनरवा भाविभोर है,
ईद मुबारक केतना बोले,
ख़बर नहीं फिर भी बकते,
एंकरिया बोली ब्रेकिंग ब्रेकिंग,
एंकरवा बोला आयं आयं ,
केन्ने चल गया धायं धा़यं,
नूझ रूम में मची भगदड़,
एंकरिया बोली ऐज एन वेन कमिंग इन,
वी आर अपडेटिंग एवरीथिंग,
एंकरवा घुड़का चल बसंती ब्रेकिंग ब्रेकिंग,
बानर बनरी झूमे रे,
बकलोलवन दर्शक देखे रे,
का हो गया गान्ही के नेशन में ,
भगदड़ मच गई स्टेशन में,
टीभी पर चढ़ गया एंकर ,
लइका खानी बोला भयंकर,
आवे दे रेस्पोसिंबिल को,
गाड़ेंगे हम सबमर्सिबिल को,
सूखी गंगा हम नहीं सूखे,
सेव द नेशन टीभी स्टेशन,
बनरी बोली बुआ को,
ऐ काकी देखो हमको,
एंकरिया बन बन नाचूं मैं,
कान खुजाऊं लात लगाऊं,
ख़बरों की तो भात बनाऊ,
एंकरवा बन गिया एडिटर,
एंकरिया का बिगड़ा जूपिटर,
नो जस्टिस है नूझ रूम में ,
बाबू जस्टिस है कोर्ट रूम में,
एंकरवा गाया पार्टी राग,
दाँत चियारा मुँह बिगाड़ा,
तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा,
करते हैं ये चेंज प्रोफेशन,
भाड़ में जाए अपना नेशन,
यू आर वाचिंग टीभी नूझ,
वी आर टोकिंग नथिंग नूझ।
आ गए देखो मदारी मामा,
बजा के डमरू लजा के लबरू,
वही बाढ़ है वही खाज है,
मानवता पर बड़ी लाज है,
प्रजेंट इनडिफनिट में एंकरिया बोली,
पास्ट परफेक्ट में एंकरवा,
कहत कबीर सुनो भाई दर्शकू,
साधु मरिहन जोगी मरिहन,
मरिहन संत कबीर,
बेलमुंड ज्योतिष कहलन,
कबीरा मर गिया बाज़ार में,
बनके टीभी मरीज़।
मरिहन संत कबीर, ( हिन्दी पत्रकारिता का बानर काव्य भोलुम थ्री- मौलिक कवि रवीश एंकर टीभी वाले )

हिन्दी पत्रकारिता का लांग बानर काव्य- मौलिक कवि रवीश एंकर

एंकर बोला को-एंकरिया से,
ख़बरे नाच रहीं बिन सावन के,
कहीं डूबी है मुंबई,
ख़ूब सुखी है दुबई,
भागलपुर में मर गए चार,
औरंगाबाद में सब बर्बाद,
दे जवाब दे जवाब,
सोई साली उठ सरकार,
एंकरिया झूमी चारो ओर,
कैसा माहौल है यारा बोल,
ठीक ठाक है मुल्क बेहाल,
खंडन निंदा सब बेकार,
चल करते हैं भाएं भाएं,
भौंक भौंक के ख़बर सुनाए,
मोटका फोंटवा छरपत है,
पतरकी खबरवा सरकत है,
एंकरिया रूठी आन स्क्रीन,
वाय आम लुकिंग डल एंड थिन
मान मेरी एंकरिया जान,
बोला लंपट एंकरवा महान,
चल खेंले अब सवाल सवाल,
मिलके करें हम बवाल-बवाल,
बंट गया बक्से में इंसान,
एक बक्से से झांककर बोला,
ये पोलटिसन बड़ा बड़बोला,
एंकरी टपकी तड़ से बोली,
आय मीन आय मीन लिसन टू मी,
उस बक्से से झांकी मुंडी,
बोली दैड्स व्हाट आय वांट टू से,
एंकर कूदा भड़ भड़ से,
बट लेगें एक छोटा सा ब्रेक,
एंकरिया मुस्काई धीमे से,
नीचे ताकी हल्के से,
एंकरवा बोला झटके से,
बोल रे नेशन क्या है जवाब,
एंकरिया बोली नो जवाब नो जवाब,
ज़ोर का झटका धीरे से,
स्क्रीन पर टपका बिग कोच्चन,
क्यों क्यों क्यों क्यों क्यों क्यों,
धर दीन्ही चदरिया ज्यों का त्यों
बंदर मामा फटा पजामा,
टीभी देखने आए थे,
लैनल चैनल लैनल चैनल,
टपकट टपकत पहुंचे थे,
हर चैनल पर कोच्चन है,
हर लैनल पर टोच्चन है
इस मुंडी को खींचे वो,
उस मुंडी को पहले दो,
भारी भरकम एंकर भयंकर,
हल्की फुल्की स्लिम एंकरिया
देख के बोली प्यारी बंदरिया
ए उस्ताद मुझको देख,
टीभी पर भी जमती हूं,
बनरा बोला मैं भी हूं,
दोनों लड़ गए आपस में,
बनरवा पकड़ा बनरिया को,
बनरिया नोची बनरवा को,
बक्से से निकली मुंडी,
बोली नो वन टौंकिंग टू मी,
चल बेटा ले ले ब्रेक,
एंकरवा बोला बट द कोच्चन इझ ग्रेट,
एंकरवा बोला मेरा आइडिया,
टीभी को हो गया डायरिया,
डायरिया से फिर मलेरिया,
एक ही मच्छर सबको काटा,
सब एंकरवा झाड़ा फिरता,
बहस बहस बहस बहस,
तहस नहस तहस नहस
आय अम आस्किंग ऐसा कोच्चन,
पूछ न सके जो जावेद बच्चन,
मैं हूं एंकर सबसे महान,
मुंडी मुंडी भर दी दुकान,
आओ मदारी तुम भी देखो,
तुमरे बानर तुमरे गान,
लल्ला लल्ला लल्ला लल्ला,
एंकरिया बोली,
हह्हा हह्हा हह्हा हह्हा,
( हिन्दी पत्रकारिता का लांग बानर काव्य- मौलिक कवि रवीश एंकर, कौमा का प्रयोग इसलिए किया गया है ताकि पंक्तियां आपस में मिल न जाएं. कोच्चन का मतलब क्वेश्चन है. मैंने न्यूज़ चैनल कभी नहीं लिखता। मुझे ये नूझ लैनल ही दिखाई सुनाई देते हैं। )